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रविवार, 22 मई 2011

अधिग्रहण की पीड़ा

भूमि अधिग्रहण का संकट केवल भट्ठा-पारसौल तक सीमित नहीं है। आज देश में ऐसी कई अधिग्रहण हैं, जो खबर बन पाने के लिए तरस रहे हैं। भूमि अधिग्रहण से जुड़ी त्रासदी की एक कहानी उत्तर प्रदेश और बिहार को जोड़ने वाला हथुआ-भटनी प्रस्तावित रेलमार्ग के सहारे लिखी जा रही है। जहां हथुआ तक रेल पटरी बिछाने को लेकर 112.49 एकड़ जमीन के अधिग्रहण का नोटिस किसानों को मिल चुका है। लेकिन किसान किसी भी कीमत पर अपनी जमीन देने को तैयार नहीं हैं।

भूमि अधिग्रहण के खिलाफ पूर्वांचल के किसान लामबंद होकर पिछले तीन महीने से क्रमिक अनशन पर बैठे हैं। हथुआ-भटनी प्रस्तावित रेलमार्ग के लिए अधिग्रहित की जाने वाली जमीन की चपेट में 14 गांव हैं। जमीन अधिग्रहण की घोषणा होने के बाद इलाके में कुछेक घटनाएं किसानों के सामने पैदा हुए संकट का आभास कराती हैं। घटना इस साल 22 फरवरी की है। जब भूमि अधिग्रहण के विरोध में क्रमिक अनशन पर बैठे देवरिया जिले में बनकटा गांव के राम बरन चौहान की हार्ट अटैक से मौत हो गई। 55 वर्षीय राम बरन के पास महज 11 कट्ठा जमीन थी। जिसमें से नौ कट्ठा जमीन रेल पटरी के लिए ले ली गई । सब्जी की खेती कर गुजारा करने वाले राम बरन के सामने बाकी बची 2 कट्ठा जमीन पर गुजारा करना संभव नहीं रह गया था। पीड़ा और भविष्य की आशंका ने इस कदर घेरा कि दिल पर बन आयी। वैसे रामबरन की मौत इलाके में पहली घटना नहीं है। प्रस्तावित रेलमार्ग के लिए वर्ष 2006 में जमीन की पैमाइश के दौरान अपनी जमीन पर पत्थर गाड़ते देख रायबरी चौरिया गांव के सरल खेत में ही गिर पड़े। सरल भी जमीन छिनने के सदमे का शिकार हुए और दिल का दौरा मौत का बहाना बन गया।

दिल के दौरे से दो किसानों की मौत यह बताने के लिए काफी है कि किसी किसान के लिए जमीन का मामला महज आर्थिक नहीं है। किसान का जमीन से भावनात्मक नाता भी होता है। एक किसान अपने खेतों के कई नाम रखकर पुकारता है। कहें तो जमीन के साथ रिश्तों की तमाम कड़ियां जोड़ता है। ऐसे में जमीन छिनने का मतलब चट्टान के दरकने की तरह होता है,जिससे किसान का पूरा जीवन अनिश्चितता की खाई में चला जाता है। जमीन से मानवीय संवेदनाएं इस कदर जुड़ी हुई हैं कि जमीन बेंचने वालों को समाज सम्मान की निगाह से नहीं देखता है। जमीन का होना हैसियत तय करता है, यहां तक कि शादी-व्याह का निर्णायक पहलू बनता है। लेकिन विकास से आयातित व्याख्या में किसानों व आदिवासियों की इस मार्मिकता की कोई जगह नहीं है।

जमीन अधिग्रहण के समय छोटे किसान व भूमिहीन किसानों का संकट सबसे ज्यादा बढ़ जाता है। जिन्हें मिला मुआवजा किसी धोखे से कम नहीं होता है। जानना जरूरी है कि भारतीय कृषक परंपरा में किसान के लिए जमीन महज जीविका ही नहीं,बल्कि सोचने-समझने की ताकत होती है। यानी एक किसान खेती के काम के लिए ही कुशल होता है। लेकिन जब उसकी जमीन छिनती है तो उसकी खेतीगत कुशलता भी खारिज होती है। जिसके चलते रामबरन और सरल जैसे तमाम किसान अकुशलता वाले पेशे को करने शहर जाने या दूसरा रोजगार अपनाने के लिए मजबूर होते हैं।

विकास के मौजूदा मॉडल जनभावनाओं का ख्याल रख पाने में नाकाम हैं। यही वजह है कि सरकारों के विकास के दावे महज आर्थिक विकास दर तक केंद्रित होकर रह गये हैं। जनजीवन की गुणवत्ता में सुधार के दावे विज्ञापननुमा है,जिसकी सच्चाई भूख से होने वाली मौतें बयान करती है। कुल मिलाकर लागू आर्थिक नीतियों में भारतीय जनता की भलाई न के बराबर है। लिहाजा न केवल भूमि अधिग्रहण कानून में संसोधन की मांग होनी चाहिए,बल्कि इसके साथ-साथ शोषणकारी व्यवस्था को पोषित करने वाली आर्थिक नीतियों की समीक्षा की भी मांग होनी चाहिए। ताकि जनता व उसकी भावनाओं को बेदम होने से रोका जा सके।



शनिवार, 7 मई 2011

जामिया के छात्र अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे


परीक्षा सिर पर है और जामिया के छात्र अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठने को मजबूर हैं। एक बार फिर से वजह बना है वीसी का अड़ियल रवैया। दरअसल जामिया विश्वविद्यालय में एम.ए.मॉस कम्यूनीकेशन के फर्स्ट ईयर और फाइनल ईयर के 13 विद्यार्थियों को परीक्षा देने से रोक दिया गया है। जामिया विश्वविद्यालय प्रशासन ने इसका कारण तय प्रतिशत से कम उपस्थिति बताया है। हालांकि विश्वविद्यालय के प्रावधानो के अनुसार छात्रों ने मेडिकल सर्टिफिकेट जमा कर के उपस्थिति में 15% की छूट हासिल करने की कोशिश की लेकिन छात्रों का भविष्य खराब करने पर उतारू वीसी और विश्वविद्यालय प्रशासन ने पेश किये गये मेडिकल सर्टिफिकेट को मानने से इंकार कर दिया। वि.वि.प्रशासन का तर्क है कि 15 दिन के भीतर मेडिकल सर्टिफिकेट नहीं जमा कराया गया है,जबकि विश्वविद्यालय नियमावली में ऐसी किसी शर्त की जानकारी नहीं दी गई है।

गौरतलब है कि जिन 13 छात्र-छात्राओं को परीक्षा देने से रोका गया है,उनमें 3 छात्र-छात्राओं की उपस्थिति 65 % से ऊपर,7 छात्र-छात्राओं की उपस्थिति 70% से ऊपर,2 छात्र-छात्राओं की 60 % ऊपर है। इसे देखकर कहीं से भी ऐसा नहीं लगता कि इन छात्रों में कोई भी अपनी उपस्थिति को लेकर लापरवाह था। लेकिन जामिया विश्वविद्यालय प्रशासन ने पूरे मामले में छात्र हित को सिरे खारिज कर दिया है।

दरअसल छात्रों के लिए 75 प्रतिशत की अनिवार्य उपस्थिति के नियम की मूल भावना ये है कि छात्र कक्षाओं में आएंगे तो कुछ सीखेंगे। इस नियम का अंतिम लक्ष्य यही है कि छात्र अधिक से अधिक सीखें,लेकिन पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखने वाला छात्र लेबोरेटरी में नहीं सीख सकता। उसके सारे प्रयोग समाज को जानने और समझने से संबंधित होते हैं। बिना उनके बीच जाए पत्रकारिता को समाजोपयोगी नहीं बनाया जा सकता। क्लास में रटी गई परिभाषाओं के आधार पर परीक्षा तो पास की जा सकती है लेकिन कार्यक्षेत्र में व्यवहारिक अनुभव ही काम आता है।

इस मामले में हाईकोर्ट के जज ने वाइस चांसलर से अनुरोध भी किया था कि वे अतिरिक्त कक्षाएं लगाकर समस्या का समाधान कर सकते हैं,लेकिन वाइस चांसलर ने इस सलाह को मानने से इंकार दिया। जाहिर है, वीसी अगर उपस्थिति के नियम की मूल भावना का ख्याल रखते तो हाईकोर्ट के एक जज को इस तरह की सलाह देने की जरूरत ही नहीं पड़ती। लेकिन इस पूरे मामले से साफ है कि वीसी को विद्यार्थियों के हित की कोई चिंता नहीं है और सिर्फ एक नियम की आड़ में वे विद्यार्थियों पर तानाशाही कायम करना चाहते हैं।

जेयूसीएस मानता है कि पत्रकारिता के विद्यार्थियों को उपस्थिति के आधार पर परीक्षा से नहीं रोका जा सकता है। क्योंकि पत्रकारिता को केवल कक्षा के दायरे में नहीं समझा जा सकता है। पत्रकारिता को समाज के लिए उपयोगी बनाने के लिए जरूरी है कि इसके विद्यार्थी सामाजिक गतिविधियों,आंदोलनों को नजदीक से देखें। जिसके लिए विद्यार्थियों को कक्षा से बाहर जाने की छूट होनी चाहिए। लिहाजा पाठ्यक्रम बनाते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि जो विद्यार्थी कक्षा के बाहर जाकर काम कर रहे हैं,उसे भी उनकी पढ़ाई का हिस्सा माना जाए। पत्रकारिता पाठ्यक्रम में ऐसी कोई व्यवस्था न होना संस्थागत कमी है। जिसे दूर करने के बजाय जामिया विश्वविद्यालय प्रशासन छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ कर रहा है।

वीसी के अड़ियल और नौकरशाहीपूर्ण रवैये को देखते हुए जर्नलिस्ट्स यूनियन फॉर सिविल सोसायटी (जेयूसीएस) विद्यार्थियों को परीक्षा में बैठने देने की मांग का समर्थन करता है। छात्र हित को देखते हुए आप सभी लोगों से निवेदन है कि अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे छात्रों की मांग के समर्थन में आगे आये।

जेयूसीएस की तरफ से जारी -

शाहआलम, अली अख्तर, गुफरान,शारिक, अवनीश राय, विजय प्रताप, ऋषि कुमार सिंह, राघवेंद्र प्रताप सिंह, अरूण कुमार उरांव, प्रबुद्ध गौतम, अर्चना महतो, विवेक मिश्रा, राकेश, देवाशीष प्रसून, दीपक राव, प्रवीण मालवीय, ओम नागर, तारिक, मसीहुद्दीन संजरी, वरूण, मुकेश चौरासे,. शाहनवाज आलम, नवीन कुमार,

9873672153, 9910638355, 9313139941, 09911300375