परीक्षा सिर पर है और जामिया के छात्र अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठने को मजबूर हैं। एक बार फिर से वजह बना है वीसी का अड़ियल रवैया। दरअसल जामिया विश्वविद्यालय में एम.ए.मॉस कम्यूनीकेशन के फर्स्ट ईयर और फाइनल ईयर के 13 विद्यार्थियों को परीक्षा देने से रोक दिया गया है। जामिया विश्वविद्यालय प्रशासन ने इसका कारण तय प्रतिशत से कम उपस्थिति बताया है। हालांकि विश्वविद्यालय के प्रावधानो के अनुसार छात्रों ने मेडिकल सर्टिफिकेट जमा कर के उपस्थिति में 15% की छूट हासिल करने की कोशिश की लेकिन छात्रों का भविष्य खराब करने पर उतारू वीसी और विश्वविद्यालय प्रशासन ने पेश किये गये मेडिकल सर्टिफिकेट को मानने से इंकार कर दिया। वि.वि.प्रशासन का तर्क है कि 15 दिन के भीतर मेडिकल सर्टिफिकेट नहीं जमा कराया गया है,जबकि विश्वविद्यालय नियमावली में ऐसी किसी शर्त की जानकारी नहीं दी गई है।
गौरतलब है कि जिन 13 छात्र-छात्राओं को परीक्षा देने से रोका गया है,उनमें 3 छात्र-छात्राओं की उपस्थिति 65 % से ऊपर,7 छात्र-छात्राओं की उपस्थिति 70% से ऊपर,2 छात्र-छात्राओं की 60 % ऊपर है। इसे देखकर कहीं से भी ऐसा नहीं लगता कि इन छात्रों में कोई भी अपनी उपस्थिति को लेकर लापरवाह था। लेकिन जामिया विश्वविद्यालय प्रशासन ने पूरे मामले में छात्र हित को सिरे खारिज कर दिया है।
दरअसल छात्रों के लिए 75 प्रतिशत की अनिवार्य उपस्थिति के नियम की मूल भावना ये है कि छात्र कक्षाओं में आएंगे तो कुछ सीखेंगे। इस नियम का अंतिम लक्ष्य यही है कि छात्र अधिक से अधिक सीखें,लेकिन पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखने वाला छात्र लेबोरेटरी में नहीं सीख सकता। उसके सारे प्रयोग समाज को जानने और समझने से संबंधित होते हैं। बिना उनके बीच जाए पत्रकारिता को समाजोपयोगी नहीं बनाया जा सकता। क्लास में रटी गई परिभाषाओं के आधार पर परीक्षा तो पास की जा सकती है लेकिन कार्यक्षेत्र में व्यवहारिक अनुभव ही काम आता है।
इस मामले में हाईकोर्ट के जज ने वाइस चांसलर से अनुरोध भी किया था कि वे अतिरिक्त कक्षाएं लगाकर समस्या का समाधान कर सकते हैं,लेकिन वाइस चांसलर ने इस सलाह को मानने से इंकार दिया। जाहिर है, वीसी अगर उपस्थिति के नियम की मूल भावना का ख्याल रखते तो हाईकोर्ट के एक जज को इस तरह की सलाह देने की जरूरत ही नहीं पड़ती। लेकिन इस पूरे मामले से साफ है कि वीसी को विद्यार्थियों के हित की कोई चिंता नहीं है और सिर्फ एक नियम की आड़ में वे विद्यार्थियों पर तानाशाही कायम करना चाहते हैं।
जेयूसीएस मानता है कि पत्रकारिता के विद्यार्थियों को उपस्थिति के आधार पर परीक्षा से नहीं रोका जा सकता है। क्योंकि पत्रकारिता को केवल कक्षा के दायरे में नहीं समझा जा सकता है। पत्रकारिता को समाज के लिए उपयोगी बनाने के लिए जरूरी है कि इसके विद्यार्थी सामाजिक गतिविधियों,आंदोलनों को नजदीक से देखें। जिसके लिए विद्यार्थियों को कक्षा से बाहर जाने की छूट होनी चाहिए। लिहाजा पाठ्यक्रम बनाते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि जो विद्यार्थी कक्षा के बाहर जाकर काम कर रहे हैं,उसे भी उनकी पढ़ाई का हिस्सा माना जाए। पत्रकारिता पाठ्यक्रम में ऐसी कोई व्यवस्था न होना संस्थागत कमी है। जिसे दूर करने के बजाय जामिया विश्वविद्यालय प्रशासन छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ कर रहा है।
वीसी के अड़ियल और नौकरशाहीपूर्ण रवैये को देखते हुए जर्नलिस्ट्स यूनियन फॉर सिविल सोसायटी (जेयूसीएस) विद्यार्थियों को परीक्षा में बैठने देने की मांग का समर्थन करता है। छात्र हित को देखते हुए आप सभी लोगों से निवेदन है कि अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे छात्रों की मांग के समर्थन में आगे आये।
जेयूसीएस की तरफ से जारी -
शाहआलम, अली अख्तर, गुफरान,शारिक, अवनीश राय, विजय प्रताप, ऋषि कुमार सिंह, राघवेंद्र प्रताप सिंह, अरूण कुमार उरांव, प्रबुद्ध गौतम, अर्चना महतो, विवेक मिश्रा, राकेश, देवाशीष प्रसून, दीपक राव, प्रवीण मालवीय, ओम नागर, तारिक, मसीहुद्दीन संजरी, वरूण, मुकेश चौरासे,. शाहनवाज आलम, नवीन कुमार,
9873672153, 9910638355, 9313139941, 09911300375
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