वरुण
शैलेश
निरूपमा
पाठक को अपनी जान गवां कर जातीय दायरे से बाहर जाकर प्रेम करने की कीमत
चुकानी पड़ी थी। निरूपमा झारखंड के कोडरमा की रहने वाली थीं। दिल्ली के भारतीय
जनसंचार संस्थान में पत्रकारिता के प्रशिक्षण के दौरान निरूपमा को प्रेम हो गया।
लेकिन एक कायस्थ लड़के से प्रेम निरूपमा के ब्राह्मण परिवार को मंजूर नहीं था, और
नतीजे के रूप में उनको मौत मिली।
तमिलनाडु
में पलाइयार जाति के दलित युवक इलावरसन और पिछड़ी वन्नियार जाति की युवती दिव्या
के प्रेमविवाह का अन्त युवक की अस्वाभाविक मौत के रूप में हुआ। 7 नवम्बर, 2012 को
राज्य के धरमपुरी जिले के नाथम,
कोंडमपट्टी और अण्णानगर की दलित
बस्ती पर वन्नियार जाति के लोगों ने सुनियोजित तरीके से हमला कर 268 घरों को जला
डाला था। दिव्या के घर वाले इस रिश्ते को किसी भी सूरत में स्वीकार करने को राजी
नहीं थे। दिव्या और इलावरसन ने शादी की। लेकिन यह शादी वन्नियार जाति के लोगों को नागवार
लगी। वन्नियारों ने पंचायत करके दिव्या को वापस करने का फरमान सुनाया। दिव्या ने
इसे नकारते हुए अपने पिता के घर जाने से इनकार कर दिया। इस सामाजिक दबाव के चलते दिव्या
के पिता नागराजन को शायद खुदकुशी करनी पड़ी थी। नागराजन की खुदकुशी के बाद वन्नियारों
की करीब 25,00 लोगों की भारी भीड़ नाथम, अन्ना
नगर और कोंडोपट्टी गांव में घुस कर 268 दलितों के घरों में आग लगा दी। इस हमले के
बाद वन्नियार संघम ने पिछड़ी जातियों का एक दलित विरोधी गठबंधन बनाने की कोशिश की।
प्रचार किया गया था कि किस तरह दलित युवक पिछड़ी जाति की लड़कियों को बहलाते फुसलाते
हैं। यहां तक कि अनुसूचित जाति-जनजाति निवारण अधिनियम (1989) के कथित दुरुपयोग के
मद्देनजर उसे कमजोर करने की मांग भी की गई थी। अंतत: दिव्या ने मां के घर लौटने का
निर्णय लिया और उसके दो दिन बाद ही इलावरसन को 4 जुलाई 2013 को धरमपुरी में रेलवे
पटरी पर मृत पाया गया था। जाहिर है प्रेम की कीमत के रूप में इलावरसन को अपनी जान
गंवानी पड़ी थी।
दरअसल,
यह साफ साफ समझना होगा कि हिन्दुत्व को बनाए रखने के पीछे का मकसद हिन्दू समाज की
संरचनागत, वर्णवादी और जातिवादी ढांचे को बनाए रखना है। इस ढांचे का अर्थ ब्राह्मणवाद
में निहित है। लेकिन सत्ता हस्तांतरण के बाद बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने जो
संविधान देश को दिया वह सामाजिक समरता और समानता की पुरजोर वकालत करता है। इससे
मनुवादी व्यवस्था का किला ध्वस्त हो रहा है। ऐसे में हिन्दुत्वादी ताकतें
तिलमिलाईं हुईं हैं औऱ वो वर्णवादी व्यवस्था को पुनर्स्थापित करने को लेकर तमाम
साजिशें रच रही हैं। 16वीं लोकसभा चुनाव में अपने आप को पिछड़ी जाति का सदस्य
घोषित कर एक घोर हिन्दूवादी व्यक्ति का प्रधानमंत्री बन जाना एक खास दिशा की तरफ इशारा
करता है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने
दिवंगत पार्टी नेता गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे की अगुवाई में राज्य के
अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) से एकजुट होने और न्याय हासिल करने का आह्वान किया
तथा भाजपा को सत्ता में लाने को कहा। इस एकजुट होने और न्याय हासिल करने में
हिन्दूत्व के स्वार्थ निहित हैं। भाजपा कहती है कि हिन्दुत्व उसके आस्था का सवाल
है। मगर असल में, आस्था की आड़ में जातिगत वर्चस्व को मजबूत करने और उसे कायम रखने
का हिन्दुत्व जरिया है। इसके स्तम्भों को बनाए रखने के लिए जाति, धर्म और स्त्री
की देह को युद्ध के मैदान के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। तमिलानाडु की घटना इसकी
बानगी है। भगवा पार्टी द्वारा ओबीसी जातियों को एकजुट करने का उद्देश्य सिर्फ
जातीय ढांचे को कायम रखना है। ओबीसी जातियों का प्रेम जैसे मामलों में दलित समाज
के खिलाफ लामबंद होना सवर्ण जातियों लिए सुरक्षा कवच तैयार करता है। इस देश में
दलित आदिवासी महिलाओं से होने वाले बलात्कार के ज्यादातर मामलों में सवर्ण अपराधी
होते हैं। लेकिन पिछड़ी जातियों में हिन्दुत्व के तत्व को जिंदा कर दलितों आदिवासियों
के खिलाफ खड़ा कर दिया जाता है औऱ यही ब्राह्मणवादी समाज को मजबूती देता है। वरना
होना तो यह चाहिए की पिछड़ी और दलित जातियां एकजुट होकर न्याय हासिल करने का अपना रास्ता
तय करें। लेकिन जब हिन्दूत्व न्याय की परिभाषा तय करेगा तब इसका परिणाम कोडरमा की
निरूपमा पाठक और तमिलनाडु में इलावरसन के हत्स के रूप में देखने को मिलेगा। और
इससे आगे बढ़कर लव जेहाद का भ्रम खड़ा होगा और दो धर्मों के बीच विलगाव की स्थिति
पैदा होगी। यही हिन्दुत्व का असली मकसद है। हिन्दूवादी संगठनों द्वारा ‘लव
जेहाद’ का भ्रम खड़ा करना उसी साजिश का एक हिस्सा है। हिन्दू समाज
अपने वर्णवादी चरित्र के चलते अंतरजातीय प्रेम तक को बर्खास्त करता है और
हिन्दुत्व के इसी ब्राह्मणवादी चरित्र के कारण निरूपमा को अपनी जान गंवानी पड़ी
थी।
दूसरी
बात, प्रेम के खिलाफ हिन्दूत्व की भाषा एक है चाहे वह गैर हिन्दू जाति के खिलाफ हो
या अल्पसंख्यकों के खिलाफ। उसमें कोई अंतर देखने को नहीं मिलेगा। पिछले कुछ महीनों
में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह प्रचार किया गया कि मुस्लिम लड़के हिन्दू
लड़कियों पर डोरे डालने के लिए सज-धज्जकर कॉलेजों के आसपास घुमते-फिरते हैं। ठीक
इसी तरह के बयान तमिलनाडु में इलावरसन के प्रेम के मामले में राजनीतिक पार्टियों
के बयान देखने को मिले थे। तमिलानाडु में उस समय पूरे घटना पर पट्टाली मक्कल काची
(पीएमके) के अध्यक्ष और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री अंबुमणि रामदास के पिता एस. रामदास
का बयान गौरतलब था। रामदास का कहना था कि दलिय युवक जींस टी-शर्ट और फैंसी
सन-ग्लास लगाकर वन्नियार जाति की युवतियों को बहलाते फुसलाते औऱ प्रेम जाल में
फंसाते हैं। हिन्दूत्ववादी संगठव ‘लव जेहाद’ का भ्रम खड़ा कर महिलाओं पर भी काबू करना चाहते
हैं। महिलाओं की आजादी पर अंकुश लगाकर मर्दवादी समाज उसे अपने कब्जे में रखना
चाहता है। हिन्दूत्व को पुर्नस्थापित करने के लिए जातिय वर्चस्व औऱ महिलाओं पर
काबू किया जा रहा है। इसे रोकने के लिए दलितों, महिलाओं और अल्पसंख्यक समाज को
सशक्त करना होगा।
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